Nida Fazli Poetry: Read some of the best creations of Nida Fazli which tells you a lot about life.
यह फिल्म सरफरोश का लोकप्रिय गीत है, जिसे निदा फाजली ने लिखा है।
Allama Iqbal Shayari Kumar Vishwas Shayari Gulzar ShayariBest Nida Fazli Poetry
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैंपहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैंवक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैंचलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैंगिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम खबर के हम हैं।
कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसेजागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाकी है मगर साँस रूकी हो जैसेजानता हूँ आपको सहारे की ज़रूरत
नहीं मैं तो सिर्फ़ साथ देने आया हूँहर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसेराह चलते हुए अक्सर ये गुमां होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसेएक लम्हे में सिमट आया है सदियों का
सफ़र ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसेइस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे।
ये कैसी कशमकश है जिंदगी में
किसी को ढूंढते हैं हम किसी में“जो खो जाता है मिल कर जिंदगी में
गज़ल है नाम उसको शायरी मेंनिकल आते हैं आंसू हंसते हंसते ये
किस ग्रम की कसक है हर खुशी मेंकहीं चेहरा, कहीं आंखें, कहीं लब
हमेशा एक मिलता है कई मेंचमकती है अंधेरों में ख़ामोशी
सितारे टूटते हैं रात ही मैंसुलगती रेत में पानी कहां था
कोई बादल छुपा था तिश्नगी मेंबहुत मुश्किल है बंजारा मिज़ाज़ी
सलीका चाहिए आवारगी में.!
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने मेंशाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने मेंरात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने मेंजाने किस का ज़िक्र है इस अफ़साने
में दर्द मज़े लेता है जो दोहराने मेंदिल पर दस्तक देने कौन आ निकला
है। किस की आहट सुनता हूँ वीराने मेंहम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़
चले उन को शायद उम्र लगेगी आने में.!
जो कहीं था ही नहीं उसको कहीं ढूंढना था
हमको इक वहम के जंगल में यकीं ढूंढना थासब के सब ढूंढते फिरते थे बन के हुजूम
जिस को अपने मे कहीं अपने तईं ढूंढना थाजुस्तजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
ख़ुद को खोना था कहीं और कहीं ढूंढना थानींद को ढूंढ लाने की दवाएं थीं बहुत
काम मुश्किल तो कोई ख़्वाब हसीं ढूंढना थादिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना
जो जहां था ही नहीं उस को वहीं ढूंढना थाहम भी जीने के लिए थोड़ा सुकूं थोड़ा सा चैन
ढूंढ सकते थे मगर हमको नहीं ढूंढना था।