Imran Pratapgarhi’s Shayari: Unveiling the Essence of Emotion

Imran Pratapgarhi Shayari: आज हम आपके लिए उर्दू और हिंदी के शायर मोहम्मद इमरान प्रतापगढ़ी जी की कुछ चुनिंदा शायरी लेकर आए हैं, जो आपको जरूर पसंद आएंगी।

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Imran Pratapgarhi Shayari

ज़माने पर भरोसा करने वालों,
भरोसे का ज़माना जा रहा है !

तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर,
जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!

मोहब्बत के सभी मंजर बड़े खाली से लगते हैं,
अख़ीदत से कहे अल्फाज़ भी झाली से लगती हैं,
वो रोहित बेमूला की मौत पर आंसू बहाता है,
मगर उस शाख के आंसू भी
घड़ियाल(मगर-मच) से लगते हैं..

अपनी मोहब्बत का यो बस एक ही उसूल है,
तू कुबूल है और तेरा सबकुछ कुबूल है।

मेरे खुलूस की गहराई से नहीं मिलते
ये झूठे लोग हैं सच्चाई से नहीं मिलते
मोहब्बतों का सबक दे रहे हैं दुनिया
को जो ईद अपने सगे भाई से नहीं मिलते.!

हाथों की लकीरें पढ कर रो देता है दिल
सब कुछ तो है मगर एक तेरा नाम क्यूँ नहीं है…

Imran Pratapgarhi Shayari
Imran Pratapgarhi Shayari

उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे,
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो,
हम ऐसे बुजदिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे।

अब ना मैं हूँ ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
जिन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे.
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे ।

चक दमन रफू करके लिखता हूं मैं,
ज़ख्मा से गुफ्तगू करके लिखता हूं,
दर्द गाने को भी हौसला चाहिए,
आंसुओं से वजू करके लिखता हूं मैं..

मोहम्मद इमरान खान है. प्रस्तुत हैं उनकी कुछ चर्चित कविताएं-

यहीं पर नहीं जिंदगी खत्म होती
गर अपना कोई बेवफ़ा हो गया है,
समझ लो कि इक हादसा हो गया है।
नहीं इससे हर इक खुशी खत्म होती यहीं पर
यहीं पर नहीं जिंदगी खत्म होती।

खता दूसरे की सजा खुद को मत दो,
ज़हर जिसमें हो वो दवा खुद को मत दो।
न देखो कि कुछ लोग क्या कर रहे हैं,
हैं एकाध तो जो दुआ कर रहे हैं।
भुला दो वो गुजरी हुई सारी बातें,
समझ लो अंधेरे भरी थी वो रातें।
और इससे नहीं रोशनी ख़त्म होती
यहीं पर नहीं जिंदगी खत्म होती।

हुआ जो भी वो सब यकायक नहीं था,
यही सच है वो तेरे लायक नहीं था।
न टपके ज़मीं पर कोई अश्क बह के,
दिखा दो ये उसका दिया ग़म भी सह के।
ये आंसू हैं मोती इन्हें मत लुटाओ,
तुम्हें है कसम तुम ज़रा मुस्कुराओ।
नहीं बांटने से हंसी ख़त्म होती
यहीं पर नहीं जिंदगी खत्म होती।

तुम इस तरह ख़ुद को अकेले न छोड़ो,
ये दुनिया, ये दुनिया के मेले न छोड़ो।
अगर उसकी यादें हैं दिल से भुलाना,
मेरा गीत ये साथ लेकर के जाना।
तुम्हें बीते दिन याद बरबस दिलाकर,
तेरे टूटे दिल को यूं ढांढस बंधाकर।
है इमरान की शायरी ख़त्म होती
यहीं पर नहीं जिंदगी खत्म होती।

हवा कुछ ऐसी चली है बिखर गए होते
रगों में खून न होता तो मर गए होते

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते

हमीं ने जख्मे -दिलो-जां छुपा लिए वरना
न जाने कितनों के चेहरे उतर गए होते

हमें भी दुख तो बहुत है मगर ये झूठ नहीं
भुला न देते उसे हम तो मर गए होते

सुकूने -दिल को न इस तरह से तरसते हम
तेरे करम से जो बच कर गुजर गए होते

जो हम भी उस से जमाने की तरह मिल लेते
हमारे शामो – ओ शहर भी संवर गए होते

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